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दुनिया में सबसे ज्यादा प्रतिबंधों के बावजूद दौड़ रही इस देश की इकॉनमी, भारत-चीन से मिल रही संजीवनी!

यूक्रेन के साथ लड़ाई में फंसा रूस दुनिया की टॉप 10 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल नहीं है। पश्चिमी देशों ने उस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं। दुनिया में इस समय सबसे ज्यादा प्रतिबंध रूस पर ही लगे हैं। इसके बावजूद पिछले साल रूस ने जी-7 के सभी देशों को पछाड़ दिया।

 

 

 

 

नई दिल्ली: रूस ने साल 2022 में यूक्रेन पर हमला किया था। उसके बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे। दुनिया में सबसे ज्यादा प्रतिबंध रूस पर ही हैं। लेकिन इन प्रतिबंधों के बावजूद उसकी इकॉनमी काफी मजबूत बनी हुई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2024 में रूस की इकॉनमी 4.3% बढ़ी जो जी-7 में शामिल सभी देशों के मुकाबले कहीं ज्यादा है। G7 में कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और अमेरिका शामिल हैं। पिछले साल
ब्रिटेन की इकॉनमी में 1.1% और अमेरिका में 2.8% की बढ़ोतरी हुई।

सवाल यह है कि रूस ने पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस की इकॉनमी में तेजी कैसे आई? दरअसल रूस ने यूरोप को जाने वाली तेल की आपूर्ति को चीन और भारत की ओर मोड़ दिया। भारत और रूस बड़ी मात्रा में रूस से तेल का आयात कर रहे हैं। हाल के वर्षों में रूस भारत के सबसे बड़ा तेल सप्लायर बनकर उभरा है। साथ ही रूस की करेंसी रूबल इस साल दुनिया की सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन गई है। बैंक ऑफ अमेरिका के अनुसार इसमें 40% से अधिक की वृद्धि हुई है

 

आगे की स्थिति

लेकिन बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूस के लिए इस साल हालात अच्छे नहीं हैं। देश के अंदर महंगाई लगातार बढ़ रही है। रूस में महंगाई की दर 9.9 फीसदी है। साथ ही ब्याज दरें बढ़कर 20% तक पहुंच गई हैं। कंपनियों को जरूरत के हिसाब से कर्मचारी नहीं मिल रहे हैं। रूस के वित्त मंत्री ने चेतावनी दी कि देश ओवरहीटिंग यानी अत्यधिक तेजी के बाद मंदी की कगार पर है। पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण आयात की कीमतें बढ़ रही हैं लेकिन श्रमिकों की कमी के कारण मजदूरी भी बढ़ गई है।

 

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2024 के अंत में देश में लगभग 26 लाख श्रमिकों की कमी थी। इसकी वजह यह है कि बड़ी संख्या में लोग यूक्रेन के साथ युद्ध में चले गए हैं या इससे बचने के लिए विदेश भाग गए हैं। केंद्रीय बैंक ने बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के लिए इस साल ब्याज दरों को रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ा दिया है। लेकिन इससे कंपनियों के लिए निवेश करने के लिए जरूरी पूंजी जुटाना और भी महंगा हो गया है। प्रतिबंधों और कमजोर कीमतों के कारण रूस के तेल और गैस रेवेन्यू में गिरावट आई है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार मई में यह पिछले साल के मुकाबले 35% कम हो गया।

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